आस्था अज्ञानता से पैदा होती है और अज्ञानता से अंधविश्वास पैदा होता है, अंधविश्वास से पाखण्ड पैदा होता है. पहली पीढ़ी की मूर्खता से पैदा हुआ पाखण्ड दूसरी पीढ़ी की परंपरा बन जाता है *परजीवी* समाज द्वारा फैलाया गया काल्पनिक चीजों का डर और लालच इन अन्धविश्वासी परंपराओं को जिंदा रखता है और जब कोई बुद्धिजीवी उस मूर्खता पर सवाल करता है तो लोगो की भावनाएं आहत होने लगती है।
चार्वाक* ने कहा कि जीवन चार तत्व से मिलकर बना है पृथ्वी,जल,वायु और अग्नि, जब इंसान मरता है तो सभी तत्व विलीन हो जाते है मरने के बाद जीवन का कोई अस्तित्व नहीं. इसलिए जब तक जिंदा हो सुख से रहो,
*खाओ पीओ मौज करो*
यानी भौतिक जीवन को सुखी बनाने को कहा है चार्वाक का लोकायत दर्शन प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है लोकायत का अर्थ होता है जो लोगों में व्याप्त हो यानी जो विचार समाज में स्थापित हो वही लोकायत है चार्वाक का अनीश्वरवादी दर्शन को विदेशी क्रूर आस्थावान लोगो ने खत्म कर दिया इसकी माफी उनकी औलादें कब मांगेगी?
*गौतम बुद्ध ने कहा कि दुनियां को बनाने वाला कोई ईश्वर नहीं यह खुद ही चलायमान है कोई आत्मा,परमात्मा,पुनर्जन्म नहीं है कोई स्वर्ग,नरक नहीं है उन्होंने बुद्धिज्म में व्याप्त बुराइयों को खत्म किया समाज को वैज्ञानिक चेतना दी जीवन जीने के लिए सत्य,करुणा और मैत्री का मार्ग दिया लेकिन विदेशी आस्थावान आक्रांताओं ने हजारों साल तक उनके विचारों के साथ संघर्ष करके भारत से खत्म किया यहां के लोगो को अपनी किताबो में शुद्र घोषित करके शिक्षा और धन से विरक्त कर दिया यहां के बहुसंख्यक बौद्धिष्ट समाज की संस्कृति बदल दी लेकिन बुद्ध को विश्वगुरु बनने से नहीं रोक सके,दुनियां में बुद्धिज़्म फैलने से नहीं रोक सके,भारत से बुद्धिज्म को मिटाने वाले विदेशी आस्थावान आक्रांता क्रूर समाज अपने पूर्वजो के जुर्म की माफी कब मांगेगा?*
महान कवि *कबीर* ने कहा-
कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लिए बनाय!
ते चढ़ मुल्ला बाग दे क्या बहरा हुआ खुदाय!!
जुलाहा कबीर खुदा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं लेकिन किसी मुसलमान ने आहत होकर उनकी हत्या नहीं की बल्कि उन्होंने हत्या की जिनके धंधे पर कबीर के कारण बट्टा लग रहा था और बाद में कबीर को ब्राह्मण माता के गर्व से पैदा होना लिखा गया कबीर के नाम से नकली दोहे लिखकर चरित्र हनन किया गया।
महाकवि *रैदास* ने कहा-
*जीवन चार दिवस का मेला रे!*
*बामन झूठा,वेद भी झूठे,झूठे ब्रह्म अकेला रे!!*
*रैदास बाभन मत पूजिये,जो होवे गुन हीन!*
*पूजिये चरन चांडाल के,जो होवे गुन परवीन!!*
रैदास चमार थे वैज्ञानिक वर्ग के थे जिसने समाज को जूता,चप्पल,थैला,कपड़ा और न जाने क्या क्या समाज को बनाकर दिया मानव सभ्यता को आगे बढ़ाया फिर *परजीवी समाज* ने अपनी किताबो में उसी को नीच घोषित कर खुद ऊंच बन गए लेकिन मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने में कोई योगदान नहीं दिया इसीलिए रैदास ने जमकर आलोचना की फिर परजीवियों ने उन्हें *रैदास से रविदास* बना दिया और उनकी मूल शिक्षाओं को खत्म कर दिया इसकी माफी *क्रूर आस्तिक परजीवी समाज* कब मांगेगा?
माली जाति के *जोतिराव फुले* ने *गुलामगिरी* किताब लिखकर परजीवियों की चूलें हिला दी तो महार जाति में पैदा हुआ *डॉ. अम्बेडकर* ने *जाति का विनाश* किताब लिखकर परजीवियों की उच्चता की कब्र खोद दी.
नायर जाति के *रामास्वामी पेरियार* ने *सच्ची रामायण* किताब लिखकर परजीवियों की आस्था की धज्जियां उड़ा दी भारत में मूलनिवासी बुद्धिज्म की नास्तिक और विदेशी क्रूर आस्तिकों की हजारो साल के संस्कृति संघर्ष का इतिहास है *भारत की नास्तिक और विदेशियों की आस्तिक संस्कृति का टकराव हजारों साल से चल रहा है यह आज का नहीं है अब आस्था का वास्ता देकर,डराकर परजीवी अपनी धार्मिक दुकानों को ज्यादा दिनों तक बचा नहीं पाएंगे यह इनके लूट की आखिरी सदी है।*
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Kabir